उपन्यास विचित्र हत्यारा लेखक कर्नल रंजीत

     विचित्र हत्यारा

  कहानी की शुरुआत होती है एक हवेली से जो फ़ार्म हाऊस के बीचों  बीच बनी हुई है।
  मेजर बलवन्त अपनी कार से घर वापस आ रहे  थे की , उन्हे गोली चलने की आवाज सुनाई देती है
अभी वो उसका अन्दाजा लगाने लगते हैं तभी दुसरी गोली की आवाज भी सुनाई देती है।
     मेजर बलवन्त अपने साथियों के साथ वहा जाते हैं तो उन्हे पता चलता है कि राणा हनुमंत सिंह की बड़ी बहन की हत्या  हो चुकी है और छोटे भाई को पीठ पर गोली लगी है  और ये शायद किसी चोर की हरकत मालुम होती है ।


    अगले दिन मेजर बलवन्त के घर इंस्पेक्टर युधिष्ठिर द्विवेदी आते हैं और उनसे बोलते हैं की वहा पर चोर का नही बल्कि किसी कातिल ने ये सब कुछ किया है। ये सुनकर मेजर वहा जाने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
कहानी बहुत ही जबरदस्त है और अंत तक कातिल को जानने की उत्सुकता बनी रहती है और कातिल का पता जब अंत मे चलता है तो पाठक चौक जाता है ।
    इसमे रोचकता बनी रहती है ।सभी उपन्यासों से आलग इनके उपन्यास मे प्रत्येक चैप्टर का शीर्षक है जो उपन्यास पढने मे रोचकता जगाता है
    एक क्लासिक जासूसी उपन्यास है।अवश्य पढ़े।
रेटिंग 10में से 9 है 


        अजीत पांडेय

दंगा ( सामाजिक उपन्यास)

दंगा ( सामाजिक उपन्यास)
लेखक-सुरेश चौधरी
प्रकाशक - नीलम जासूस कार्यालय
पृष्ठ संख्या- 184



लेखक के 'दंगा ' उपन्यास के पहले कुछ सामाजिक उपन्यास 'खाली आँचल-2005, 'अहसास'-2015 और 'प्रतिशोध'-2019 और 'केेसके'-2021 प्रकाशित चुके हैं। इनके उपन्यास मुख्यत: आम इंसान के जीवन मे आनेवाली समस्याओं और संघर्ष पर आधारित होते है ।
दंगा की कहानी शकुन की कहानी है जो उपन्यास की मुख्य नायिका है। शहर के मेडिकल कॉलेज से एम .बी. बी. एस . के प्रथम वर्ष में अध्ययनरत मेधावी छात्रा शकुन एक गरीब परिवार से है ।
उपन्यास की शुरुआत इसी मेडिकल कॉलेज से होती है और शकुन को पता चलता है कि शहर में दंगे भड़क गए है । किसी तरह शकुन घर पहुचती है तो एक बुरी खबर उसका इंतजार कर रही होती है। जब उसको पता चलता है कि उसके शिक्षक पिता को दंगाइयों ने मार दिया है। अपने परिवार को दंगाइयों से बचाने के संघर्ष कर रही शकुन अपने पिता के जाने के गम में डूबी रहती है और फिर अचानक
शकुन पर एक और वज्रपात होता है जब एक रात उसकी माँ भी एक "हादसे "का शिकार हो जाती है ।जिसका जिम्मेदार शकुन ख़ुद को समझती रहती है। शकुन को ऐसे समय समीर का ही सहारा मिलता है जो उससे बेहद प्यार करता है लेकिन अब परिवार की जिम्मेदारी शकुन उठाती है और समीर से शादी करने से मना कर देती है। लेकिन उसकी समस्याएं यही समाप्त नही होती उसके ऊपर क्षेत्र के विधायक शम्भूनाथ की भी बुरी नजर है जो उसको किसी तरह पाना चाहता है। 
क्या शकुन अपने भाइयों अमन,  नमन और बहन  निशा की जिम्मेदारी उठा पाती है??
समीर और शकुन की प्रेम कहानी क्या मोड़ लेती है? क्या शकुन भी  समीर से प्रेम करती है ?
शकुन के डॉक्टर बनने के सपने का क्या होता है?
विधायक  शम्भूनाथ और शकुन के बीच संघर्ष में किसकी जीत होती है?
दंगे की पृष्ठभूमि पर लिखा गया उपन्यास शकुन के संघर्ष की गाथा है जिसमे एक तरफ अपने परिवार के लिये प्रेम और त्याग की भावना है तो दूसरी तरफ अपने व्यक्तिगत जीवन का संघर्ष भी है जिसको लेखक ने बखूबी दर्शाया है। समीर और शकुन की प्रेम कहानी को बहुत ही सुंदरता से लेखक ने  दर्शाया है।उपन्यास की भाषा बहुत सरल है और संवाद बहुत ही प्रभावित करते है।अपनी  स्वर्गवासी माँ के साथ शकुन का संवाद  का दृश्य बहुत भावुक करता है।
उपन्यास में भाषागत अशुद्धिया बहुत है ।प्रूफरीडिंग की कमियो को छोड़ दिया जाए तो उपन्यास बहुत रोचक है और सामाजिक उपन्यास के प्रेमी इसको एक बार जरूर पढ़ सकते है।उपन्यास किंडल पर भी उपलब्ध है।

संजय आर्य
(इंदौर)

मुम्बई 03:02 लेखक-मैनाक धर

उपन्यास-मुम्बई 03:02
(मूल रूप में अंग्रेजी में लिखित,हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध)
लेखक-मैनाक धर
हिंदी अनुवाद-उर्मिला गुप्ता
प्रकाशक-वेस्टलैंड प्रकाशन
किंडल अनलिमिटेड पर उपलब्ध
समीक्षा-आज़ाद यादव



क्या होगा अगर अचानक से आपका मोबाइल काम करना बंद कर दे?
क्या होगा अगर सारी दुनिया से बिजली चली जाये?
या आज के समय के सबसे महत्वपूर्ण साधन या संसाधन अचानक से काम करना बंद कर दे?
आपके पास भोजन व पानी ना हो?
रविवार की सुबह 03:02 बजे, जिस दुनिया को हम जानते थे उसका अंत हो गया। मुंबई अचानक काली हो गई - न बिजली, न फोन, न इंटरनेट और न ही काम करने वाली कारें,आपका पैसा या सामाजिक रुतबा किसी काम का नही।एक युद्ध जो सीमाओं पर या सेना द्वारा नहीं, बल्कि हमारे घरों और गलियों में, हमारे साथ सैनिकों के रूप में छेड़ा जाना था।
लेखक मैनाक धर की मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी हुई व उर्मिला गुप्ता द्वारा अनुवादित उपन्यास मुम्बई तीन बजकर दो मिनट पढ़ते हुये आपको ऐसा महसूस होगा जैसे आप कोई हॉलीवुड की एक्शन फ़िल्म देख रहे हो वो भी बिना पलक झपकाये।
आपको उपन्यास पड़ते वक्त ब्रूस विलिस की डाइ हार्ड याद आ जायेगी लेकिन उसका इस उपन्यास की कहानी से कुछ लेना देना नही है सिवाय हमले के,उसमे साइबर हमला होता है और इसमें??
कहानी है आदित्य की जो अपने हालिया प्रमोशन का भरपूर आनंद उठाना चाहता है और शाम को दोस्तो के साथ अपने प्रमोशन को सेलिब्रेट करता है लेकिन उसी रात तीन बजकर दो मिनट पर कुछ ऐसा होता है जिसके सामने उसके हाल ही में मिले सबसे बड़े प्रमोशन की कोई अहमियत नही रह जाती है,अहमियत रहती है तो बस कैसे भी जीवित रहने की।
मैनाक धर ने जिस खूबसूरती और बारीकी से उपन्यास में घटनाक्रम पिरोये है वो आपको हतप्रभ करने के लिये काफी है,आज के टेक युग की समस्याओं को सामने रखकर एक जबरदस्त एक्शन थ्रिलर उपन्यास लिखा है।
उपन्यास बहुत ही ज्यादा रोमांचक है और उतने ही गहरे है उपन्यास के संवाद।
रेटिंग - 4.5/5

(आज़ाद यादव)

सदस्यों का जन्मदिवस

ग्रुप के सम्मानित सदस्य 
आशीष श्रीवास्तव एवं  आजाद यादव का जन्मदिवस क्रमशः 23 जुलाई एवं 26 जुलाई को है।


सिटी ऑफ इविल-दिलशाद अली

Fly dream publications



क्या आपको ऐसी कहानी वाला उपन्यास पसंद है 
जो कि आपकी सारी थ्योरी की दिशा और दशा बदल दे??
 तो यह उपन्यास आपके लिए ही है ।


उपन्यास के लेखक दिलशाद अली जी का कहना है कि वह अनेक उपन्यासों के अध्ययन से ही लेखन की प्रेरणा पाएं हैं ।

यह उपन्यास लेखक का पहला शाहकार है और निसंदेह वह अपने पाठकों की मेहनत का पूरा पैसा व समय का पूरा मूल्य वसूल करवाने में सफल रहे हैं, जिसके लिए उन्हें दिल से बधाईयां ।


रही बात कमियां निकालने की तो उसके अनगिनत रूप हैं । जिसके लिए मेरा विचार है "fault की स्पेलिंग में ही fault है" । किसी भी उपन्यास का हमें पसंद आने का एक ही पैमाना है कि वह हमारी उम्मीदों पर खरा उतरे । इसके लिए लेखक महोदय ने अपना शत -प्रतिशत दिया है ।
 रोमांच,हॉरर,रोमांस आदि स्वादानुसार है । हाँ कमजोर हृदय वालों को अवश्य ही यह उपन्यास अवश्य ही विचलित कर देगा ।



कहानी एक अज्ञात ख़ज़ाने की खोज से शुरू होती हुई ,एक रहस्यमय ट्रैन के उसके गंतव्य तक पहुंचने की जद्दोजहद की है । सब कुछ एक व्यवस्थित तरीके से होता है । वह ट्रैन कोई सामान्य ट्रेन नहीं बल्कि आधुनिक सुविधाओं से लैश एक बुलेट ट्रेन है । उपन्यास अपने शबाब पर तब आता है जब ट्रेन के रास्ते में आती है एक सुरंग । उसके बाद शुरू होता है भय और रोमांच का एक नया सफर । जो कि बिल्कुल नया है और वाकई में हॉलीवुड मूवी को टक्कर देने की क्षमता रखता है ।



और अंत !!!


अवश्य ही आपको यकीन दिला कर ही मानेगा कि लेखक का दावा बिल्कुल उचित है ।




उपन्यास में बहुत कुछ है जो नवीनता और मौलिकता की छाप दिखाता है । क्लाइमेक्स का रहस्य गज़ब का है , जो हमें लेखक से पूछने पर विवश कर देगा 'आपकी अगली किताब कब आ रही है?"



हम लोग तो वह हैं जिनको पढ़ने का इतना तगड़ा वाला क्रेज़ है कि कुछ पढ़ने को न मिला तो बस/ट्रैन/कार में बैठे बैठे , रोड के किनारे की दीवारों,खंभों,मकानों पर लगे विज्ञापन भी पढ़ते रहे हैं और तो और सामने वाले से अखबार भी छीनकर जल्दी से पढ़ लेने का हुनर बचपन से है । क्या मजाल की हमारा पड़ोसी हमसे पहले अखबार पढ़ ले भले ही पैसा वही दे रहा हो । तो भैया हम तो किसी लेखक की किताब का नुक्स तो निकलने से रहा (दिखेगा तब तो बताया जाएगा), हां खूबियां कोई छिपने न देंगे ।


लेखेक के स्वर्णिम भविष्य के लिए शुभकामनाएं और फ्लाई ड्रीम्स को भी तहे 'दिलसे' धन्यवाद ।


रेटिंग :- 8/10 (मेरे नज़रिए  से )
समीक्षक : मनेंद्र त्रिपाठीजी 

फिंगरप्रिंट - सुरेन्द्र मोहन पाठक

फिंगरप्रिंट:- उपन्यास
लेखक:-  सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब

पृष्ठ:-318



प्रकृति की एक नियम है जो बोए हो वह काटना पड़ेगा,कभी कभी अतीत में किए गए पाप जब वर्तमान में आकर अपना हिसाब मांगने लगता है तो इंसान को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है,इंसान ब्याकुल हो उठता है,
पर क्या हो जब पाप आपका नहीं होकर आपके किसी खास का हो और उसका हिसाब आपको देना हो
ऐसी ही कुछ परस्थिति अपने उपन्यास के नायक के सामने खड़ी हो जाती है, जब एक आदमी उसकी नई नवेली पत्नी की 2 साल पहले की पाप का सच लेकर उसके सामने उपस्थित होता है, और 12 लाख की डिमांड कर देता,और खुद को इकबाल भाई का आदमी बताता है, अब लाजमी है अपने कहानी का नायक ये बात जानकर व्याकुल हो उठता है और रिपोर्टर सुनील के पास जाता है खुद को और अपनी पत्नी को इस जंजाल से बचाने के लिए
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि
वह पाप क्या था, जो उसकी वाइफ ने 2 साल पहले की थी
इकबाल भाई कौन था
कहानी के नायक की पत्नी का पाप आगे क्या गुल खिलाता है
क्या सुनील नायक को इन झमेलों से बचा पाया
कहानी शुरू में तो पाठको को बांध कर रखती है, पर जैसे जैसे आगे बढ़ती है स्लो होने लगती है, लास्ट भी उतनी खास नहीं है,
कहानी का अंत वही है जो 99 परसेंट ब्लैकमेलर टाइप नॉवेल की होती है,
कुल मिलाकर यह एक साधारण मर्डर मिस्ट्री नॉवेल है, जो एक बार पड़ने योग्य है
क्यों पढ़े:- अगर आप पाठक साहब के डाई हार्ड फैन है तो पढ़ सकते है
क्यों नहीं पढ़े:- अगर आप एक अच्छी कहानी की तलाश में है, ये नॉवेल आप के लिए नहीं है, इस से अच्छी सैकड़ों नॉवेल मार्केट में उपलब्ध है

रेटिंग:-4/10
समीक्षक (आशीष रंजन -Ujjain)

तिलक रोड का भूत (कमांडर करण सक्सेना सीरीज) लेखक:- अमित खान

उपन्यास:- तिलक रोड का भूत (कमांडर करण सक्सेना सीरीज)
लेखक:- अमित खान
प्रकाशक:- सुमन पॉकेट बुक्स



मुंबई की घनी आबादी के बीचों बीच तिलक रोड एक ऐसी जगह जहां शाम का अंधियारा घिरते ही लोगों की आवाजाही बंद हो जाती है, कारण तिलक रोड में एक भूत का आतंक! जिसके बारे में कहा जाता है की वो किसी कैप्टन का भूत है जिसकी दो साल पहले तिलक रोड पर एक एक्सीडेंट में मौत हो चुकी थी और वो अपनी मौत का बदला वहां से गुजरने वालों से लेता है।

2 सालों में लगभग दर्जन भर मौत उस भूत के द्वारा हो चुकी रहती है और पुलिस भी इस रहस्य को सुलझाने में नाकाम रहती है इसलिए तिलक रोड में आवाजाही  शाम होते ही रुकवा दी जाती है।

इस केस में "आग में घी" तब पड़ता है ,जब एक विदेशी उच्चायुक्त तिलक रोड के भूत का शिकार हो जाता है तब इस केस को सरकार द्वारा सीआईडी को सौपा जाता है और सीआईडी का होनहार ऑफिसर कमांडर करण सक्सेना केस की खोजबीन में जुट जाता है। 
                      तहकीकात के दौरान उसका सामना बार बार स्पाइडर नामक गैंग से होता है, भूत की गुत्थी के साथ स्पाइडर का रहस्य भी सुलझाने में वो लग जाता है।
            
★तिलक रोड के भूत का क्या रहस्य था?
★भूत की गुत्थी सुलझाने में करण सक्सेना ने क्या क्या पापड़ बेले?
★स्पाइडर गैंग का उद्देश्य क्या था?
★तिलक रोड और स्पाइडर गैंग का क्या कनेक्शन था?

इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए इस उपन्यास को पढ़ा जा सकता है।

मेरी रेटिंग 07/10

अमितेष प्रताप सिंह

सम्राट (कॉमिक्स समीक्षा)

सम्राट
लेखक:तरुण कुमार वाही
संपादक:संजय गुप्ता
सह संपादक:मनीष गुप्ता


इजिप्ट  हमेशा से ऐसा देश रहा जिसकी रहस्यमई कहानियां लोगो को अपनी ओर आकर्षित करती रही है
तूतेन खामेन, पिरामिड, किलियोपैत्रा, फेराओं, मिश्र से संबंधित कुछ ऐसे नाम जो पाठको को हमेशा से अपनी तरफ आकर्षित करते है
सम्राट की कहानी भी कुछ इन्हीं किरदारों के आस पास बुनी गई है,कहानी शुरू होती करनबशी (नागराज का एक दुस्मन) से जिसके हाथ लग गया है एक अतिप्राचीन नक्शा जो उसे ले जाता है पिरामिड के अंदर, 
पिरामिड के अंदर जाकर उसे पता चलता है किलॉपैत्रा की महल और उसके सक्ती की श्रोत किलोपैट्रा के राजदंड के बारे में,
लेकिन राजदंड पाना इतना आसान भी नहीं था, राजदंड पाने के लिए एक नक्शे की जरूरत पड़ने बाली थी, जिसका एक हिस्सा सुपर कमांडो धुव्र के और एक हिस्सा होता नागराज के पास

क्या करनबसी नक्शे का दोनों हिस्सा प्राप्त कर सका
क्या उसे कीलोपैत्रा का राजदंड मिल सका
क्या किलोपिट्रा हजारों साल बाद फिर से जिंदा हो सकी
सबसे बड़ा सबाल क्या कारण दुनिया का सम्राट बन सका
ये सभी प्रश्नों का जवाब आपको राज कॉमिक्स की कॉमिक्स सम्राट और उसका दूसरा पार्ट सुडांगी पड़ने के बाद मिल जाएगी

कहानी का थीम अच्छी है , लेकिन  इसमें अनावश्यक मारधाड़ और एक्शन सीन बहुत ज्यादा है ,  एक्शन- सीन कम होते तो ये जबरदस्त कॉमिक्स साबित होती।

रेटिंग: 6.5/10

             "आशीष रंजन"

लोकप्रिय साहित्य की यात्रा

लोकप्रिय साहित्य की चर्चा

लुगदी साहित्य लुगदी  पेपर से  आधुनिक समय मे सफेद पेपर और  उसके आगे डिजिटल किंडल फॉरमेट तक की यात्रा कर चुका है। 'बाबू देवकीनंदन की चंद्रकांता  ने लुगदी सहित्य को एक अलग ही मुक़ाम पर पहुंचा दिया।"चंदकांता 'से यात्रा   अमित खान की वेब सीरीज "बिच्छु का खेल 'तक  पहुंच गई है।लुगदी साहित्य को आज की पीढ़ी के बीच भी पहले की तरह पसंद किया जाना "शुभ संकेत "है।








वास्तव में देखा जाए तो जासूसी उपन्यास-लेखन की जिस परंपरा को गोपाल  राम गहमरी ने जन्म दिया था; उसका हिन्दी में विकास ही न हो सका।

प्रेमचंद के  जिस उपन्यास  "गबन "को पठनीयता की दृष्टि से सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है, उस 'गबन' की अनेक कथा स्थितियां एक विदेशी क्राइम थ्रिलर से मिलती-जुलती हैं और जिसका अनुवाद गोपालराम गहमरी  ने  'जासूस' पत्रिका में किया था।
गहमरी जी की बाद की पीढ़ी को जो भी लोकप्रियता मिली, उसका बहुत कुछ श्रेय देवकीनंदन खत्री और गहमरी जी को ही जाता है। इन्होंने अपने लेखन से वह  वातावरण  स्थापित कर दिया था कि लोगों  की रुचि  लोकप्रिय साहित्य को पढ़ने की और बढ़ गयी थी।उसका प्रमुख कारण था लुगदी साहित्य की  भाषा। जो' सामान्य जनता 'की भाषा हुआ करती थी। आसानी से सभी को समझने में सहायक।

वैसे देखा जाए तो हिंदी साहित्य में गंभीर साहित्य और लोकप्रिय साहित्य दोनो को पाठकों का भरपूर प्रेम मिला है।
50-60 के दशक में वेदप्रकाश काम्बोज का नाम घर -घर मे लोकप्रिय था।
उस समय  जासूसी और सामाजिक साहित्य में बड़ा विभाजन था।  गुलशन नंदा, रानू, प्रेम वाजपेयी, राजहंस, राजवंश और मनोज के उपन्यास सामाजिकता और रूमानियत से भरे हुए थे. ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज, इब्ने सफी, अकरम इलाहाबादी जासूसी उपन्यासकार थे. सामाजिक उपन्यास बिकते ज्यादा थे, पढ़े कम जाते थे।

लोकप्रिय साहित्य को मास से क्लास तक पहुंचाने के लिए सुरेंद्र मोहन पाठक को अवश्य श्रेय दिया जाना चाहिए ।विदेशी पब्लिकेशन के द्वारा उनके उपन्यास "65 लाख की डकैती" को अनुवाद कर पब्लिश किया जाना लोकप्रिय साहित्य का  अपूर्वभूत सम्मान है।
 वेदप्रकाश शर्मा  का उल्लेख किये  बिना ये चर्चा अधूरी रहेगी।प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता आमिर खान ने अपनी फिल्म 'तलाश 'के प्रमोशन की शुरुआत वेदप्रकाश शर्मा के निवास   से की थी  जो जाने-माने उपन्यासकार और लगभग आधा दर्जन फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर वेद प्रकाश शर्मा  की लोकप्रियता को विशाल सम्मान है ।

कहते हैं कि 1993 में वर्दी वाला गुंडा की पहले ही दिन देशभर में 15 लाख कॉपी बिक गई थीं।
लेकिन वस्तुतः ऐसे उदाहरण नाम-मात्र ही है। अभी भी लोकप्रिय साहित्य और उनके लेखको को वह स्थान नही मिला है जिसके वे हकदार है। हमेशा से लुगदी साहित्य हेय दृष्टि का शिकार रहा है।और अभी भी अपनी जड़ें तलाश रहा है।  एक बार मैंने सुरेंद्र मोहन पाठक सर से प्रश्न किया था कि" सर क्या कारण है कि हिंदी के लेखको को अंगेरजी लेखको के समान सम्मान नही मिलता।?
उनका जवाब था- "कोई पढे तो"।
" हिंदी किताबो को पाठक ही नही मिलते"।
आवश्यकता है -वर्तमान में उपलब्ध प्रचार-प्रसार के साधनों के माध्यम से  लोकप्रिय साहित्य के प्रति रुचि फिर से बढ़ाने की ताकि हिंदी के पाठकों में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि हो।

साहित्य के इतिहास में प्रारम्भिक समय मे अनेक आलोचकों ने लुगदी साहित्य की चर्चा की तो की लेकिन  बाद के समय मे उसको लगभग भुला ही दिया गया ।

आज के युवा लेखक नई ऊर्जा से भरपूर है।नए लेखको में संतोष पाठक, इकराम फरीदी  ,कंवल शर्मा ,  सबा खान, अनिल गर्ग ,अनुराग कुमार जीनियस, अजिंक्य शर्मा  आदि का नया पाठक वर्ग तैयार हो रहा है और निश्चित रूप से किसी नए सवेरे की उम्मीद  अवश्य ही की जाना चाहिए।

'राहुल प्रसाद 'की कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही है।


ये ख्वाहिशें, ये चाहतें, ये धड़कनें बेहिसाब,

चलो मिलकर लिखते हैं, एक नई किताब।

ये नया सवेरा, ये नया दिन, ये नई-नवेली रात,

चलो मिलकर करते हैं, फिर कोई नई रूमानी बात।

संजय आर्य
इंदौर

पहली वैम्पायर : विक्रम ई. दीवान


पहली वैम्पायर
लेखक : विक्रम ई. दीवान
प्रकाशन : बुक कैफे पब्लिकेशन

पृष्ठ संख्या -184



"एक पिशाचनी की दिल दहला देने वाली ख़ौफ़नाक कहानी"


वारलॉक श्रृंखला के बाद "पहली वैम्पायर " का पाठको को बेसब्री से इंतजार था।लगता है विक्रम ई.दीवान सर ने कसम खाई है कि वो पाठकों को नए नए तरीकों से डराकर ही रहेंगे।और इस बार पाठकों को उन्होंने एक ऐतिहासिक डरावनी कहानी के माध्यम से डराने का न केवल बेहतरीन प्रयास किया है बल्कि डराने में सफल भी रहे है।
कहानी की पृष्ठभूमि में है-सन 1818 का ब्रिटिश काल और उनका ठगों के साथ संघर्ष।ब्रिटिश कैप्टेन जोनाथन स्मिथ एक घमंडी और सनकी आदमी है उसके साथ इंग्लैंड की ही मानवविज्ञानी एलेन भी रहती है जो भारत घूमने आई है।स्मिथ को एक दिन जब अपने इलाके में एक आदमी की पेड़ पर उल्टी लटकी लाश मिलती है।और जैसे किसी जीव ने उसके शरीर से खून की आखरी बून्द तक निकाल ली हो ।उसके बाद शुर होती है स्मिथ की खोजबीन और उसका सामना होता है खून पीने वाली पिशाचिनी से और वो एक अघोरी की सहायता लेता है।
पिशाचिनी की कहानी काफी रोचक और ख़ौफ़नाक है।एक बानगी देखिये।

"मुझे लगता है, तुम और कैप्टन दोनों इस जीव को बहुत हल्के में ले रहे हो ।
  अगर यह एक आम कातिल, आदमखोर जानवर या ठगों का गिरोह भी होता, तो मुझे समझ में आ जाता, लेकिन कुछ ऐसा, जो जानवरों और इंसानों के खून की आखिरी बूंद तक को खींच लेता है, जिसे किसी ने नहीं देखा, जिसका कोई वर्णन नहीं कर सकता है, वह तो एक भयानक खतरा है।"
कहानी 1818 से ईसा पूर्व 460 के बीच घूमती रहती है।उपन्यास में एलन का पात्र काफी  रोचक है जिसके माध्यम से कहानी रोमांचक मोड़ लेती है एलन का पात्र काफी प्रभावित करता है। उपन्यास में पिशाचिनी और अंग्रेजो के बीच  टकराव के  कई दृश्य पाठकों के रौंगटे खड़े करने के लिए काफी है। लेखक के द्वारा काफी शोध के बाद दी  गई जानकारी के कारण कहानी वास्तविकता के करीब पाठक को महसूस होती है।
उपन्यास में एक दो तकनीकी त्रुटियां है और भाषागत अशुद्धियां भी है लेकिन पढ़ते समय कही खलती नही है।प्रूफ रीडिंग की कुछ कमियों को नजरअंदाज किया जा सकता है।भाषा काफी सरल है।संवाद भी काफी रोचक है--


"मृत्यु से सिर्फ वह मूर्ख डरते हैं जिन्हें अमरता के यातनापूर्ण अस्तित्व के मायने नहीं पता होते । कभी-कभी अस्तित्व मौत से भी बदतर होता है।"

कौन थी ये पिशाचनी?कोई जीव या आत्मा?
क्या वास्तव में पिशाचनी लोगो का खून  पीती थी?या ये ठगों की कोई साजिश थी?


पिशाचनी और स्मिथ के बीच  अंतिम युद्ध में किसकी जीत हुई? इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा ।
उपन्यास में पाठकों के लिए   रोमांचक थ्रिलर कहानी के साथ साथ हॉरर का भरपूर मिश्रण किया गया है।उपन्यास में कई सारे दृश्य काफी डरावने है।पाठकों को यह उपन्यास काफी पसंद आनेवाला है।विशेषकर
हॉरर उपन्यासो के प्रेमी इसको अवश्य पढ़े-उपन्यास किंडल पर भी उपलब्ध है।

रेटिंग ; 8/10

संजय आर्य
इंदौर

मौत की छाया :- सुरेंद्र मोहन पाठक

उपन्यास:- मौत की छाया (सुनील सीरीज 53)
लेखक:- सुरेंद्र मोहन पाठक




सुनील सीरीज जब पढ़ना शुरू किया था तब से ही सुनील का फैन हो गया था वैसे तो पाठक जी ने एक से बढ़कर एक कहानियाँ सुनील की लिखी है लेकिन इस कहानी में जो कसावट, सस्पेंस और सुनील के शानदार एक्शन दिखाए गए है वो दूसरी कहानियों से इसे अलग बनाते है।
बलास्ट अखबार का रिपोर्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती जिसके एडिटर का मानना है कि सुनील अगर किसी साधारण खबर के पीछे लग गया तो उसमें भी कोई धमाका खोज निकालेगा, वो उसे एक लड़की की मौत के बारे में बताता है और उसकी तहकीकात करने बोलता है, लड़की कौन है उसकी मौत कैसे हुई इस बात को गोपनीय रखने की पुलिस पूरी कोशिश कर रही थी, एडिटर राय को शक है कि लड़की की मौत साधारण नही है और लड़की भी साधारण नही है (किसी बड़े रसूखदार खानदान से सम्बंध रखती है)

सुनील को तहकीकात के दौरान पता चलता है कि लड़की सांसद मुकुट बिहारी की इकलौती औलाद रंजीता गुप्ता है और वो ड्रग एडिक्ट भी थी।

ड्रग कनेक्शन आने पर कहानी का पहलू ख़ूनी और ड्रग माफिया को पकड़ने के लिए सुनील की जदोजहद में बदल जाता है।

घुमावदार कथानक के बीच सुनील आखिरकार कातिल का पता लगा लेता है।

क्यों पढ़े:- अगर आप सुरेंद्र मोहन पाठक और सुनील के फैन है।
उसके अलावा एक बेहतरीन क्राइम थ्रिलर से मरहूम नही रहना चाहते।
तब आपको ये उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए।

क्यों न पढ़ें:- ये तो गैर जरूरी बात हो गई पाठक जी ने इतनी खूबसूरती से इस उपन्यास को लिखा है कोई भी उपन्यास प्रेमी इसे पढ़ने से इनकार नही कर सकता।

वैसे तो सुनील की तारीफ करने की और इच्छा हो रही है लेकिन फिलहाल इतना ही।

अमितेष प्रताप सिंह

मैं अपराधी जन्म का ( सुरेंद्र मोहन पाठक)

मैं अपराधी जन्म का ( सुरेंद्र मोहन पाठक) 



 वक्त एक सा नहीं रहता हमेशा बदलता रहता है । सोने की चमक फीकी पड़ जाती है। यही साबित करती है  "मैं अपराधी जन्म का" सुरेंद्र मोहन पाठक  की नयी रचना है। जिसमें "विमल के संसार " को बढ़ाने की कोशिश की गई है। जिस तरह से विमल की कहानी को आगे बढ़ाया गया है लगता है जबरदस्ती रबर को खींचा जा रहा है । विमल को संसार विरक्त कर फिर वापस मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश जम नही रहा। कहानी में वो धार नजर नहीं आता जो विमल सीरिज में होती है। पिछले कुछ रचनाओं से ही पैनापन कम होता गया । उपन्यास एकदम थका हुआ महसूस किया मैने न कोई रोमांच न ही आगे क्या होगा जैसी उत्सुकता । 
      लगता ही नहीं   300 नॉवेल लिखने वाले लेखक की लेखनी है। लगा जैसे नौसिखिए लेखक ने लिखा है नाम सिर्फ सुमोपा का ।  घटनाक्रम को खींच कर पूरे उपन्यास में खींचा गया कहानी तेजी से बढ़ी ही नहीं ।पहले की उपन्यासों को एक ही बैठक में पढ़ता था इसे तो पढ़ते समय ऊब आने लगती थी किसी तरह  4 दिन में खत्म किया। 
          अब नए लेखक भी अच्छे लिखने लगे है। जो पाठको बांधे रहते है। मुझे उपन्यास पूरी तरह निराश किया । मेरी तरफ इस रचना को 
           **(🌟🌟)

समीक्षक : शेखर भारती

वो भयानक रात - मिथिलेश गुप्ता

उपन्यास - वो भयानक रात

लेखक - मिथिलेश गुप्ता



लेखक का यह प्रथम उपन्यास है जो सच्ची घटना पर आधारित है ।लेखक ने एक हॉरर उपन्यास से शुरुआत की है। और अपने पहले ही उपन्यास से पाठको को डराने में कामयाब हुवे है ।

क्या हो अगर सुनसान रात में आपका सामना अचानक किसी भूत प्रेत या आत्मा से हो जाये?
इस उपन्यास का प्रारम्भ ऐसी ही एक हैरतअंगेज घटना से होता है जब संग्राम सिंह का परिवार का सामना अज्ञात शक्तियों से होता है
जो अमावस की भयानक मनहूस काली रात में अपने एक दोस्त की बेटी की शादी से एक भयानक जंगल के रास्ते से होकर घर वापस आ रहे होते हैं ।तभी गाड़ी चला रहे राहुल के सामने कोई चीज अचानक से आती है और गाड़ी  एक पेड से टकरा जाती है लेकिन किसी को गंभीर चोट नहीं आती और हैरानी तो तब होती है जब वह गाड़ी से टकराने वाले की खोज करते हैं तो उन्हें आसपास कुछ भी नहीं मिलता है । और  उनके साथ एक के बाद एक ऐसी ऐसी घटनाएं घटित होती हैं जो रीढ़ की हड्डी तक में सिहरन पैदा कर दें  
क्या संग्राम सिंह का परिवार उस मनहूस जंगल से बाहर निकल सका या फिर जंगल में घट रही घटनाओं का शिकार हो गया? और उनके साथ क्या हुआ ? यही इस  उपन्यास की केंद्रीय विषय वस्तु है ।
उपन्यास शुरू से अंत तक रोचक है और कई घटनाक्रम काफी डरावने है ।हॉरर उपन्यास की श्रेणी में इसका कथानक अत्यंत नवीन और सत्य घटना पर आधारित होने से पाठको की कौतूहलता को बढ़ाता है । उपन्यास में एक ही कमी लगी कि  इसका  अंत और भी अच्छा बनाया जा सकता था । लेखक पाठको को शुरू से अंत तक "हॉरर "का थ्रिल देने में सफल हुवे है ।


                     समीक्षक -  डॉ राज वर्मा

अनदेखा खतरा - संतोष पाठक

उपन्यास - अनदेखा खतरा

लेखक - संतोष पाठक

यह एक जासूसी उपन्यास है।




कहानी की शुरुआत लाल हवेली में रह रही जूही नाम की लड़की से शुरू होती है जिसे हर वक्त ऐसा लगता है जैसे उसे कोई मारना चाहता है हवेली में अजीबोगरीब घटनाएं घटती रहती हैं कभी भूत प्रेत दिखते हैं तो कभी नर कंकाल तो कभी उसे गोली मारकर कोई उसकी हत्या करना चाहता है लेकिन लाल हवेली में रह रहे उसके चचेरे भाई प्रकाश को ना तो भूत प्रेत दिखते हैं ना ही नर कंकाल और न गोली की आवाज सुनाई देती है  यह घटना जूही के पिता राम सिंह के मरने के बाद से शुरू होती है राम सिंह की मौत तब होती है जब उनके यहां एक बहुत बड़ी पार्टी चल रही होती है उनकी मौत हवेली से नीचे गिरने की वजह से होती है इसे एक हादसा माना जाता है और फिर जूही के साथ अजीबोगरीब घटनाएं शुरू होती है तब जूही अपनी सहेली शीला को बुलाती है  शीला के आने पर जूही को कुछ तसल्ली मिलती है लेकिन फिर भी डर और खौफ बना रहता है फिर शीला प्राइवेट जासूस विक्रांत को बुलाती है  और फिर विक्रांत का जासूसी सफर शुरू होता है हवेली में घट रही अजीबोगरीब घटनाओं और रहस्य से पर्दा हटाने के लिए
1 लाल हवेली का रहस्य क्या था
2 जूही की हत्या कौन करना चाहता है
3 क्या जूही के पिता रामसिंह हादसे में मरे या फिर किसी ने उन्हें मार दिया  आखिर कौन है जिसने राम सिंह की हत्या की
4 नर कंकाल और भूतों का चक्कर क्या है
5 क्या सच में लाल हवेली  में भूतों का निवास है या फिर कोई  गहरा षड्यंत्र  
6 कौन है इस षड्यंत्र का सूत्रधार और इतना बड़ा षड्यंत्र रचने के पीछे उसका क्या मकसद है
7 क्या जासूस विक्रांत इन सभी षड्यंत्र और रहस्यों से पर्दा हटा सका या फिर वह भी षड्यंत्र का शिकार हो गया

ऐसे ही अनेकों सवालों के जवाब पाने के लिए आपको उपन्यास पढ़ना पड़ेगा
मुझे विक्रांत और शीला की नोकझोंक अच्छी लगी और जो नहीं अच्छा लगा वो दिलावर सिंह जैसे खतरनाक डॉन  जिसकी धौंस पुलिस वालों के ऊपर तक है  उसका इतनी आसानी से मर जाना बाकी पूरा उपन्यास बहुत ही अच्छा है और आपको शुरू से लेकर अंत तक बांधकर रखेगा  और अंत चौंकाने वाला है



              समीक्षक- डॉ राज वर्मा

एक लाश का चक्कर

 एक लाश का चक्कर- अनुराग कुमार जीनियस

लेखक - अनुराग कुमार जीनियस




यह एक  तेज रफ्तार जासूसी उपन्यास है । कहानी की शुरुआत झील में अटकी हुई एक लाश से शुरू होती है ।पुलिस की छानबीन से पता चलता है की वो लाश वासु नाम के व्यक्ति की है और वासु के कमरे से एक फोटो  मिलता है ,जिसमें वासु और एक व्यक्ति साथ में होता है  जिसका नाम प्रभु है जो अपनी प्रेमिका तमन्ना के साथ रह रहा होता है। पुलिस जब प्रभु से  फोटो के बारे में पूछती है तो प्रभु कहता है कि मैंने इस व्यक्ति को पहले कभी नहीं देखा ना ही मैं  इसे जानता हूं और इसके साथ मेरी फोटो कैसे आ गई यह मैं नहीं जानता वह अपने आप को निर्दोष बताता है  कोई उसे फसाना चाहता है किसी ने उसके खिलाफ साजिश रची है कड़ी छानबीन करके असली कातिल को पकड़ने के लिए विनती करता है तब असली कातिल को पकड़ने के लिए जासूस चेतन और धर्मा की मदद लेते हैं फिर चेतन और धर्मा सदिग्ध लोगों की छानबीन में जुट जाते हैं तहकीकात में कई ऐसे लोग मिलते हैं जिनके पास कत्ल करने की ठोस वजह भी होती है लेकिन फिर भी कातिल पकड में नहीं आता है l
वाशु का कातिल कौन है? और कत्ल करने की वजह क्या है? 
क्या वाकई मे प्रभु निर्दोष है? 
क्या जासूस चेतन और धर्मा असली कातिल को पकड़ सके?
ऐसे ही अनेकों सवालों के जवाब पाने के लिए उपन्यास पढना पडेगा
 मुझे चेतन और धर्मा की जोड़ी अच्छी लगी और कहानी का अन्त तो चौकाने वाला था  उपन्यास में रहस्य और इन्वेस्टीगेशन है और तेजी से बदलते घटनाक्रम है जिससे कारण  उपन्यास शुरू से अंत तक रोचक बन पड़ा है ।

             समीक्षक- डाॅ राज वर्मा

एक्सीडेंट एक रहस्य कथा - अनुराग कुमार जीनियस

उपन्यास - एक्सीडेंट एक रहस्य कथा
लेखक - अनुराग कुमार जीनियस



यह कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसका नाम ऋषभ है जो एक्सीडेंट में मर जाता है
और उसके घर वाले उसकी लाश का अंतिम संस्कार कर देते हैं एक दिन अचानक वह अपने घर वालों के सामने आ जाता है सारे लोग हैरान हो जाते हैं लेकिन उन्हें यकीन नहीं होता उन्हें लगता है यह कोई बहरूपिया है जो ऋषभ का भेस बनाकर उनके घर में आ गया है फिर वह ऋषभ की सभी गतिविधियों पर चोरी छुपे नजर रखते हैं ऋषभ की गतिविधियां रहस्यमई लगती है और उसकी हरकतें भी पहले से काफी बदली हुई रहती है जिससे ऋषभ के पिता भानु प्रताप और भाई आलोक और उसकी पत्नी लाली यानी ऋषभ की भाभी को पूरा यकीन हो जाता है कि यह कोई बहरूपिया ही है कंफर्म करने के लिए वह इंस्पेक्टर दुर्गेश का सहारा लेते हैं दुर्गेश अलोक की पत्नी लाली को देखते ही उस पर फिदा हो जाता है फिर एक दिन होटल में बुलाकर चाय में नशीली दवा मिलाकर उसके साथ मुंह काला करना चाहता है लेकिन ऐन वक्त पर उसको होश आ जाता है और वह भाग जाती है लेकिन एक रहस्यमई व्यक्ति चोरी से सारी हरकतों की वीडियो बना लेता है और इंस्पेक्टर दुर्गेश को ब्लैकमेल करता है
1 कौन है रहस्यमय व्यक्ति जो इंस्पेक्टर दुर्गेश को ब्लैकमेल कर रहा है
2 ऋषभ की सच्चाई क्या है क्या सच में डुप्लीकेट ऋषभ है या असली है
ऐसे ही अनसुलझे सवालों के जवाब पाने के लिए आपको उपन्यास पढ़ना पड़ेगा जो जासूसी और रहस्य के मामले में खरा सोना साबित होगा सस्पेंस ऐसा जो आपको जकड़ कर रखेगा और जब रहस्य खुलेगा तो आप को झटका 440 वोल्ट का जरूर लगेगा लेखक की जितनी तारीफ की जाए कम है मुझे तो बहुत ही अच्छा उपन्यास लगा आपको भी अच्छा लगेगा एक बार पढ़ कर देखिए

   समीक्षक- डॉ राज वर्मा

द ट्रेल -अजिंक्य शर्मा

उपन्यास-द ट्रेल
लेखक-अजिंक्यशर्मा
किंडल अनलिमिटेड पर उपलब्ध
आज़ाद सिंह यादव
हमेशा अपराधी मौके वारदात पर कोई ना कोई सबूत छोड़ता है जिसकी मदद से वो कानून के चंगुल में आ ही जाता है लेकिन क्या हो जब ट्रेल गलत मिले या मिले ही ना???
लेखक अजिंक्य शर्मा का सातवां उपन्यास है द ट्रेल।
एक अजीब सी मर्डर मिस्ट्री जिसमे मर्डर कैसे हुआ यही समझ मे नही आता है क्यो हुआ और किसने किया ये तो बाद कि बात है।
द ट्रेल आपको अपने सम्मोहन के जादू में बांधने में कामयाब है,सब कुछ है रहस्य है,रोमांच है,तो रोमांस भी है,कोरोना है,ताज है,ताज का राज है,तो लेखक स्वयं भी है,मतलब की पूरा मसाला है।
एक मर्डर होता है जिसमे पुलिस को कोई ट्रेल नही मिलता है या बोल सकते है कि ट्रेल मिलता है जिसका कोई मतलब नही होता है।कहानी बहुत ही दमदार तरीके आगे बढ़ती है और अंत तक पाठक को बाधने में कामयाब है।
पूरे नावेल में मुझे बस पुलिस की कार्यप्रणाली नावेल की कमजोर कड़ी जान पड़ी है पूरे नावेल में जहाँ पुलिस जानबूझकर इंसानियत दिखती फिर रही है और यही मेरी नजर में नावेल का सबसे बड़ा माईनस प्वाइंट है।इतने हिंट या ट्रेल के बावजूद भी इतना सुस्त पुलिसिया इन्वेस्टिगेशन????

कत्ल के दावेदार -राहुल

उपन्यास:- क़त्ल के दावेदार
लेखक:- राहुल
प्रकाशक:- डायमंड पॉकेट बुक्स
समीक्षक  :- अमितेश प्रताप सिंह



कहानी शुरू होती शहर के जाने माने रईस सेठ दीनानाथ से जो अपने वकील दोस्त को अपनी वसीयत कुछ इस तरह बनाने बोलता है कि जो कोई उसका क़त्ल करेगा वो उसकी सारी संपत्ति का हकदार बन जायेगा, सेठ का वकील दोस्त तो पहले आश्चर्य व्यक्त करता है लेकिन सेठ की जिद के आगे उक्त वसीयत बना देता है।

                      इस घोषणा से ही सेठ को मारने की इच्छा रखने वालों की संख्या में इजाफा हो जाता है अधिकतर तो उस अजीबोगरीब वसीयत के कारण ही सेठ को मारने का इरादा रखते है लेकिन इन सब के बीच एक ऐसा शख्स होता है जो सेठ दीनानाथ से निहायत ही नफरत करता है और सेठ की जान उसके अलावा कोई और ले उसे नागवार है।


अनेक अजीबोगरीब हादसों के बीच सेठ को मारने की कोशिश की जाती है लेकिन हर बार चमत्कारिक ढंग से सेठ बच जाता है और हर बार अपने दुश्मन को चौका देता है। 


आगे चल कर आखिरकार सेठ की हत्या हो ही जाती है और हर कोई क़त्ल का दावा करता है, वो शख्स जो खुद सेठ से नफरत करता है उसे अफसोस रहता है कि वो सेठ का कत्ल न कर सका।

इन प्रश्नों के लिए उपन्यास को पढा जा सकता है

सेठ की अजीबोगरीब वसीयत का क्या कारण है?
क्या वजह है कि सेठ हर बार बच जाता है?
सेठ का असली कातिल कौन है?
उसने सेठ को क्यों मारा? हालांकि लगता है इसका जवाब लेखक महोदय के पास भी नही है।


उपन्यास की कमियाँ
कहानी को जबरदस्ती खींचा गया है।
हत्यारे का मकसद नही बताया गया।
लेखक 70 के दशक की फिल्मों से प्रभावित जान पड़ता है।

रॉयल पैलेस -अमित खान

उपन्यास - रॉयल पैलेस  
(कमांडर करण सक्सेना सीरीज )
लेखक - अमित खान 






समीक्षा - रॉयल पैलेस एक ऐसी इमारत जहां जाने वाला कोई भी व्यक्ति जिंदा वापस नहीं आता अगर किसी तरह बच भी गया तो पागल हो जाता है ।
रॉयल पैलेस  - एक ऐसी जगह जिसके सीने में हजारों राज दफन है ।
रॉयल पैलेस  एक ऐसी जगह जहां आत्माएं निवास करती हैं ।
रॉयल पैलेस एक ऐसी जगह  जो ना जाने कितनी जिंदगीयों को निगल चुका है।
रॉयल पैलेस  एक ऐसी जगह जिसके आसपास जाना तो दूर लोग उसके नाम से भी डरते ,लेकिन कुछ  लोग ऐसे भी दिलेर है जो रॉयल पैलेस  का रहस्य जानने के लिए उस में रहते हैं ऐसे ही एक  पति -पत्नी का जोड़ा  जो पैलेस में रहते हैं  
पति - जो एक शिकारी  है  और जिसे वायलिन बजाने का शौक रहता है  
पति पत्नी एक प्यार की मिसाल होते है जिनके बीच में झगड़ा तो दूर कभी तू तू मैं मैं भी नहीं होता लेकिन एक दिन उनके बीच में ऐसा झगड़ा होता है कि  शिकारी पति अपनी पत्नी की हत्या कर देता है
वहीं दूसरी तरफ  रॉयल पैलेस के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए इंद्रजीत सिंह राणा अपने दोस्त करण सक्सेना  को बुलाता है लेकिन उससे पहले सोनिया वर्मा नाम की रिपोर्टर  रॉयल पैलेस के रहस्य से पर्दा उठाने में नाकाम रहती है करण सक्सेना के आने के बाद इंद्रजीत सिंह राणा सोनिया वर्मा और करण सक्सेना एक -एक करके कुछ घटनाओं का शिकार होकर पैलेस में प्रवेश कर जाते हैं।

 फिर आगे क्या हुआ?
 रॉयल पैलेस का रहस्य क्या था? 
क्या सच में वहाँ भूत प्रेतों का निवास था? क्या कमांडर करन सक्सेना इन सभी रहस्य से पर्दा उठा सका ?
क्या सोनिया वर्मा और इंद्रजीत सिंह राणा रॉयल पैलेस से जिंदा वापस आ सके ?
 आखिर क्या वजह थी जो शिकारी पति ने अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी पत्नी की हत्या कर दी ?
अगर आप भी रॉयल पैलेस का रहस्य जानना चाहते हैं तो एकबार उपन्यास जरूर पढ़ें रॉयल पैलेस एक तेज रफ्तार रहस्य रोमांच से भरपूर नावेल है जो आपको शुरू से  लेकर अंत तक बांध कर रखता है  और आपका भरपूर मनोरंजन करता है

रेटिंग 8/10

            समीक्षक - डॉ राज वर्मा

पांच पति , बादशाह -परशुराम शर्मा

उपन्यास
1 पांच पति
2 बादशाह
लेखक : परशुराम शर्मा
क्या हो जब आपका सामना अज्ञात दुश्मन से हो? एक हत्यारा आपका इंतजार कर रहा है और आपके पास अनजानी जगह में मात्र आपका रिवॉल्वर ही आपका साथी हो। ऐसे ही खतरनाक सफर में प्राइवेट जासूस बेसली पाल को जाना पढ़ता है।
इसकी पृष्ठभूमि में न्यूयार्क शहर है।
कहानी शुरू होती है - एक फोन कॉल से "मिस फ़्लोरा "प्राइवेट जासूस बेसली पाल को अपनी जान बचाने के लिए हायर करती है । उसके अनुसार शहर से बाहर एकांत जगह "रोजविला" में कोई उसकी हत्या करना चाहता है।और वहाँ तीनो बहने अकेली है।इस बर्फीले तूफान भरी रात में उनके पास कोई और रास्ता भी नही है।

फिर पाल को रोजविला से फ़्लोरा की दूसरी बहन" मरसीयाना "का भी फोन आता है कि उसकी जान खतरे में है अभी वह कोई निर्णय ले ही रह था कि फ़्लोरा की सबसे छोटी बहन "डिसेंटी" का भी उसको फोन आता है की वो जल्दी से पहुँचे। तीनो बहनों के एक के बाद एक फोन आने से बेसली पाल रोज विला पहुचता है और केस की इन्वेस्टीगेशन शुरू करता है। उसको पता चलता है कि फ़्लोरा का एक प्रेमी बूस्टर वहां छुपा हुआ है जो उस रात उनकी जान लेना चाहता है । उनके अंकल एक हादसे में गुजर चुके है। और तीनों बहन "गॉडमदर " के संरक्षण में रह रही है।
कहानी में ट्विस्ट उस समय आता है जब बेसली पाल पर एक रहस्यमय नकाबपोश जानलेवा हमला करता है और बेसली पाल का एक के बाद एक रहस्यों से सामना होता है जिसमे वो उलझकर रह जाता है।
बेसलिपाल जब मामले की तह में जाता है तो उसके सामने आती है तीनो बहनों के अंकल की विचित्र वसीयत । और जब रहस्यमयी नकाबपोश का उससे शतरंज का खेल शुरू होता है और सामने आता है गुजरे अतीत में हुई करोड़ो की लूट का खेल ।
कौन था वो रहस्यमयी नकाबपोश?
क्या बेसलीपाल उनकी जान बचाने में सफल हुआ?
विचित्र वसीयत और "पांच पति" का क्या रहस्य था?
या बेसली पाल ख़ुद एक साजिश का शिकार था ?
इसके लिए उपन्यास पढ़ना होगा।
नावेल शुरू से आखिरी तक बहुत ही रोचक है और पाठक को बांधे रखता है।
उपन्यास दो भाग में है। दूसरा भाग "बादशाह" है



इस उपन्यास के शेष अनुतरित प्रश्नों के जवाब इसके दूसरे भाग "बादशाह" की कहानी में मिलते है।जो सूर्यनगर में शुरू होती है। इसमें एक अदभुत पात्र से पाठक रूबरू होता है 'सरदास' जो सूरदास की तरह अंधा है लेकिन कमाल की दिमागी काबिलियत रखता है और उलझे केसों को सुलझाने में महारत हासिल है।
ऐसे ही "बादशाह " में आपको ये पात्र मिस्ट्री सुलझाता नजर आएगा।उपन्यास के शुरू से अंत तक यह पात्र आपको प्रभवित करता नजर आएगा।
पांच पति और बादशाह वह शानदार कथानक है जिसके माध्यम से परशुराम शर्मा ने लेखन जगत में धमाकेदार वापसी की थी और एक उम्दा लेखक के रुप मे स्वयं को पुनर्स्थापित किया था।यह दोनो ही उपन्यास का कथानक ऐसा है कि पाठक वर्षों तक इसको याद रखेगा।और निश्चित रूप से आप भी लेखक के प्रशंसकों में शामिल हो जाएंगे।

रेटिंग-8/10

संजय आर्य


लल्लू-वेदप्रकाश शर्मा




लल्लू
लेखक:स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा सर
पृष्ठ संख्या:288
मूल्य:10 रुपये

"दिमाग का इस्तेमाल कर ताऊ, इसमें बड़ी ताकत होती है" 
ये डायलॉग गुलशन ग्रोवर साहब अपने अनूठे अंदाज में "सबसे बड़ा खिलाड़ी" मूवी में बोलते नजर आते है।
 ये मूवी वेद सर की शानदार उपन्यास "लल्लू "पर ही आधारित थी, जो 1995 में आई थी, और उस साल की ब्लॉकबस्टर मूवी की लिस्ट में शामिल हुई थी!
अब आते है कहानी पर, ये कहानी है प्रतिशोध की, उमड़ते भावनाओं, प्यार की, दोस्ती और बदले की,

कहानी शुरू होती एक निरा बेवकूफ इंसान से जिसे गंवार कहना बेहतर होगा,लेकिन उस में एक खूबी भी थी,उस में ईमानदारी गजब की थी, अपनी इसी खूबी की वजह से वह एक बहुत ही अमीर आदमी की घर में इंट्री कर लेता है,इंट्री क्या करता है,दामाद ही बन बैठता है,
मामला यहीं बिगड़ जाता है जब, जिस लड़की से उसकी शादी होती है वह लड़की किसी दूसरे लड़के से प्यार करती है,तब परिस्थितियों में फंस कर लड़की, उसका बॉयफ्रेंड और उसके बायफ्रेंड का बाप तीनों मिलकर उस सीधे साधे और बेवकूफ इंसान की हत्या कर देता है, 
और यही इन तीनों की सबसे बड़ी भूल साबित होती है,
क्युकी अगले ही दिन मरा हुआ बेवकूफ गवार आदमी पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में आता है और उन तीनों को अपनी हत्या की जुर्म में गिरफ्तार कर लेता है,
इसी दौरान बॉयफ्रेंड के बाप को पता चलता है,जिसकी हत्या उसके बेटे ने की उसकी हत्या तो उसने आज से 21 साल पहले उसने खुद की थी,
यही कहानी का चरमोत्कर्ष है लड़के का बाप खुद को हत्यारा साबित करने के लिए मरा जा रहा था, लेकिन साबित कैसे करता ,
यही से पाठको का दिमाग घूमने लगता है हजारों प्रश्न जेहन में घूमने लगते है,मसलन
क्या वह बेवकूफ और ग्वार आदमी सच में बेवकूफ और ग्वार था ??
 
उसकी हत्या परिस्थितियो में फंस कर तीनों ने की थी या उसने परिस्थितियों को ही ऐसा बना दिया था ???

सबसे बड़ा सवाल बेवकूफ आदमी ही इंस्पेक्टर था या कोई दूसरा आदमी था ???
21 साल पहले की हत्या का क्या रहस्य था ??
और ये वर्तमान की घटना से किस तरह जुड़ी थी ??
21 साल पहले जब लड़के के बाप ने हत्या कर दी थी उसी आदमी की हत्या लड़के ने 21 साल बाद कैसे कर दी ??
उपन्यास की खासियत यह है कि हमेशा की तरह कितना भी सोच लीजिए, अंत तो आपके सोच के उल्टा ही होता है ।
अगर आप ने "सबसे बड़ी खिलाड़ी" मूवी देख रखी हो तब भी आपको एक बार ये उपन्यास जरूर पढ़नी ही चाहिए, क्युकी उपन्यास का 20 परसेंट कहानी को ही मूवी में डाली गई है और क्लाइमेक्स तो एक दम अलग ही है । 
अगर पाठको को कहानी का असली मजा लेना हो तो एक बार तो पढ़नी ही चाहिए।
पड़ने के बाद मुंह से बस दो ही शब्द निकलते है
"अदभुत" , "अतुलनीय"

समीक्षा : आशीष रंजन



खून के आंसू- विक्रम शर्मा



खून के आँसू , विक्रम शर्मा की चमत्कारी लेखनी का एक नायाब तोहफा है । यह देवा पंडित सीरीज का तीसरा उपन्यास है । कहानी वक़्त के हिसाब से काफी बेहतरीन लिखी गयी है ।



इंग्लैंड में पढ़ने के लिए गया हुआ एक भारतीय राजघराने का युवक वीरेंद्र राय जब अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वापस भारत आता है तो उसके साथ उसकी पत्नी भी होती है जिससे उसने अभी हाल ही में ही इंग्लैंड में विवाह किया हुआ होता है । 


इसके तुरंत बाद ही उसी दिन उसके महल  के  सबसे विश्वासपात्र नौकर का कत्ल हो जाता है 

महल में उस समय बिजली के तार न होने की वजह से बिजली कटी होती है । और चौंकाने वाली बात यह होती है कि उस नौकर का कत्ल करंट लगने से होता है ।


अब उस नौकर में भी रहस्य का पिटारा है ।


साथ ही आगे यह भी पता चलता है कि किसी साजिश के चलते ही वीरेंद्र राय के खानदान के सारे लोग, माता पिता दादा दादी । एक एक करके कत्ल किये गए थे ।


उनके खानदान से खार खाये बैठे एक आदमी की एंट्री भी कहानी में होती है । कहानी उलझ जाती है ।


अब शुरू होती है महल में भूत लीला ।


उसके बाद कहानी में आती है उस राजसी खानदान के जुल्मों की शिकार एक महिला ।


कहानी और ज्यादा जटिल तब हो जाती है जब वीरेंद्र राय के चाचा तथा चचेरे भाई के कुछ रहस्य सामने आते हैं ।


उपन्यास के 60% की समाप्ति पर आगमन होता है देवा पंडित का । देवा पंडित के कार्य करने के तरीके पर पाठक सोच में पढ़ जाएगा । इनको आप नर-विभा जिंदल की उपाधि से भी नवाज सकते हैं । जिनके इन्वेस्टीगेशन में कहीं भी लूप होल नहीं ढूंढ सकते हैं । देवा पंडित आते ही सारे रहस्यों से इत्मीनान के साथ एक के बाद एक पर्दे उठाते हैं ।



यह उन चुनिंदा उपन्यासों में से एक है जिसको पढ़ने के बाद आप अवश्य कहेंगे " उपन्यास की रफ्तार इतनी तेज!!!  भाई कुछ कम कर "


अंत में असली अपराधी तथा कहानी का असली खेल सामने आता है "चौंकाने वाले तथ्य के साथ ।



उपन्यास कम से कम 2 बार पढ़ने योग्य


अंक:- 10 में से 8

 समीक्षा : मनेंद्र त्रिपाठी

असली खिलाड़ी-वेदप्रकाश शर्मा



असली खिलाड़ी
लेखक:स्वर्गीय वेद प्रकाश शर्मा सर
पृष्ठ संख्या:319
मूल्य:20
लेखक का यह ऐसा उपन्यास है, जिसमे उपन्यास के बारे में उन्होंने खुद लिखा है-
" इस उपन्यास को लिखते समय मैंने बहुत एन्जॉय किया है,"
इस उपन्यास को पड़ते समय लेखक महोदय ने पाठको को एक चेतावनी दी है कि इस उपन्यास का लास्ट पृष्ठ किसी भी हालत में पहले ना पढ़े,( ये राय मैं भी अपनी तरफ से दे रहा हूं, अगर इस उपन्यास की लास्ट पृष्ठ के एक भी अक्षर पर आप की नजर पढ़ गई तो ये उपन्यास आपके लिए बेकार हो जाएगी, आप इसे फिर ना ही पढ़े तो बेहतर है)

अब आते है कहानी पर,
आप खुद एक बात सोच कर देखिए, आप सन्डे को अच्छा भला सुबह सुबह सो कर उठे,और अपनी फोटो अखबार के पहले पन्ने पर छपे देखे और नीचे लिखा हो, इस आदमी को हम नहीं जानते हैं, लेकिन विश्वस्त सुत्रो से पता चला है की जल्द ही इसकी हत्या होने बाली है,
अब बताइए आप की हालत कैसी होगी,
कुछ ऐसा ही बाक्या इस उपन्यास के मेन कैरेक्टर अनूप राजबंसी के साथ हुआ, बेचारे के होश ही पाख्ता हो गए,
फिर कहानी में इंट्री होती है सुपारी किलर कुंडा की जिसके बारे में एक बात फेमस है, जिसकी सुपारी कुंडा ने ले ली उसको फिर भगवान भी नहीं बचा सकता,
कहानी थोड़ी आगे बढ़ती है, तो आगमन होता है इंस्पेक्टर वारिश खान की, जो बेहद ही घाघ और चालक है,उसने अपनी काबिलियत से ये तो पता लगा लेता है कि अनूप राजवंशी की हत्या कौन करने वाला है, लेकिन ये पता नहीं लगा पाता की क्यों करने वाला है,
ईधर तब तक कुंडा  अनूप राजवंशी पर तीन अटैक कर चुका होता है, और तीनों ही नाकाम हो चुके होते है,जिसके बारे में फेमस है कुंडा के शिकार को भगवान भी नहीं बचा सकता, उसके तीन अटैक से अनूप राजवंशी बच चुका था,
क्या ये अनहोनी थी, या कोई और प्लांनिंग चल रही थी?? ,
 
जैसा कि वेद सर के हर उपन्यास में होता है आप अपने दिमाग के घोड़े को कितना ही दौड़ा लीजिए, अंत आपके सोच के विपरित ही होगा, इस उपन्यास में भी कुछ ऐसा ही होता है।

और मेरा यकीन कीजिए जब आप उपन्यास का अंत पढ़िएगा तो वाह वाह कर उठिएगा,आपके शरीर का एक एक रोम से पसीना निकल जायेगा, मन में सिर्फ एक ही बात" ऐसी भी प्लांनिंग हो सकती है क्या ??"
रहस्य और रोमांच से भरपूर ऐसा अनोखा उपन्यास जिसे हर उपन्यास प्रेमी को अवश्य ही पढ़ना चाहिए ।

रेटिंग 9.9/10
नोट: इस उपन्यास का अंतिम पृष्ठ पहले ना पढ़े

समीक्षा -  आशीष रंजन ( उज्जैन)

राख द ऐश ट्रेल जितेंद्र नाथ

किंडल संस्करण अब उपलब्ध है

राख द ऐश ट्रेल
लेखक – जितेन्द्र नाथ
प्रकाशन सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या 307





इस उपन्यास के लेखक ने इस के पहले जेम्स हेडली चेस के "The Sucker Punch "  का हिंदी अनुवाद किया था,  जो सभी के द्वारा बेहद पसंद किया जा रहा है  l.
यह लेखक का प्रथम उपन्यास है जो पढ़ने के बाद कही से नही लगता की यह प्रथम उपन्यास है क्योकि उपन्यास शुरू से अंत तक रोचक है और लेखक ने इसमें पाठकों के स्वाद का भरपूर ध्यान रखा है। और पाठकों को भी अपना दिमाग लगाने का भरपूर मौका मिलने वाला है।

कहानी की बात करे तो 
प्रेम नगर में एक ढाबे के पास बहुत बुरी जली हुई अवस्था मे एक आदमी की लाश मिलती है जिसकी शिनाख्त करना भी मुश्किल है  और इसके बाद इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण और उसका असिस्टेंट रोशन वर्मा इसकी इन्वेस्टीगेशन शुरू करते है । लेकिन कहानी में ट्विस्ट आता है जब इन्वेस्टिगेशन जैसे जैसे आगे बढ़ती है केस और उलझता जाता है और हत्याएं होना शुरू हो जाती है  जिसे सबूत के नाम पर  सिर्फ मात्र  ‘राख’  के सहारे इसको इंस्पेक्टर रणवीर सुलझाता है तो उसके सामने रहस्यमय खुलासे होते है।
उपन्यास में इन्वेस्टिगेशन कमाल की है जिसमे लेखक ने भरपूर मेहनत की है जिसे पाठक पढ़ेंगे तो स्वयं "दाद" दिए बिना नही रहेंगे।
एक उलझा हुआ और नया थ्रिलर कथानक जिसमे पाठकों को दिमागी खुराक मिलने वाली है ।
उपन्यास किंडल पर भी उपलब्ध है।
रेटिंग 4/5 
        
संजय आर्य 
इंदौर
द ट्रेल - अजिंक्य शर्मा 



द ट्रेल - अजिंक्य शर्मा 

" एक और नई मर्डर मिस्ट्री जिसमे रहस्य के साथ जज्बातों का सैलाब भी है जिसमे आप खो जाएंगे । कातिल को पकड़ने में इस बार पाठकों को बहुत मशक्कत करनी होगी । अंत काफी चौकाने वाला है ।"
द ट्रेल अजिंक्य शर्मा का सातवां उपन्यास है और  उनके पहले उपन्यास "मौत अब दूर नही " को पाठकों से अच्छा प्रतिसाद मिला था जिसके कारण  लेखक से पाठकों की उम्मीद बढ़ गई थी जिस पर 
"द ट्रेल ' के माध्यम से लेखक 100 प्रतिशत खरे उतरे है ।और मिस्ट्री लेखक के रूप में अपना सिक्का एक बार फिर से जमाने मे सफल रहे है।
"द ट्रेल " को मैंने एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म करके ही माना। उपन्यास का अंत काफी हैरत अंगेज है  उनके अन्य उपन्यास से इतर इसमें जज्बातों का तूफान भी है । ऐसी "मर्डर मिस्ट्री" की आप भी खुद को जासूस मानते हुवे कातिल की तलाश करने लग जाएंगे। 

रंजीत विस्वास  एक प्रसिद्ध मिस्ट्री लेखक है और पब्लिशिंग हाउस का मालिक है ।एक रात अचानक उसका खून हो जाता है और वह दीवार पर लिखकर जाता है 
"United we rise "   जबकि कोई भी मरने से पहले अपने कातिल का नाम लिखना चाहेगा।
घटना स्थल पर मिलते है सिर्फ जूतों के निशान और रंजीत विस्वास के गले में फंसे कांच के टुकड़े 
जिसके बाद शुरू होती है मर्डर की इन्वेस्टीगेशन और इंस्पेक्टर हितेश कश्यप इसमें तब उलझ कर रह जाता है जब एक संदिग्ध कातिल की भी हत्या हो जाती है।
इस केस में एक के एक मोड़ आते है और रंजीत विस्वास की सेक्रेटरी और उसकी विस्वास पात्र शैली पर जब शक की सुई जाती है तो.एक के बाद एक खुलासे होते है।
कहानी के बारे में ज्यादा बताना पाठकों के साथ नाइंसाफी होगी ।
शुरू से आखरी तक रहस्य को बनाकर रखने में लेखक सफल हुवे है और शैली का पात्र पाठकों को खूब पसंद आने वाला है और बरबस ही आपको वेदप्रकाश शर्मा की विभा जिंदल की याद दिला देती है।
"कातिल कितना ही शातिर हो वो अपने पीछे सबूत छोड़ ही जाता है " और अंततः पकड़ा जाता है। 
रंजीत विस्वास को किसने मारा?
क्यो रंजीत विस्वास ने लिखा "united we rise"
दो दो खून  की साजिश के पीछे कौन था ?
ताज का क्या रहस्य था?
इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा।
उपन्यास किंडल पर उपलब्ध है।

समीक्षा : संजय आर्य


ब्रेकिंग न्यूज़-वहशी कातिल




उपन्यास -ब्रेकिंग न्यूज़ वहशी कातिल
लेखक -अंजिक्य शर्मा
 फॉर्मेट - ई बुक
पेज -154
समीक्षा संजय आर्य

"  एक शानदार सस्पेंसफुल मर्डर मिस्ट्री जिसे आप अवश्य पढ़ना चाहेंगे। "






इस बार अंजिक्य शर्मा एक बहुत ही  चौकाने वाला कथानक लेकर आये है।
सोचिए आप लाइव डिबेट शो देख रहे हो और आपकी आंखों के सामने    कोई कत्ल दे!
सुरजवीर सिंह एक 'बिज़नेस टायकून' की लाइव डिबेट शो में हत्या हो जाती है ।मऔर  इसका इल्जाम  सीधे उसके भाई पर लगता है । कौन था सुरजवीर सिंह ? उसका कत्ल किसने और क्यो किया ?  राजवीर सिंह उसके भाई की क्या कत्ल में कोई भूमिका थी ? इसकी गुत्थी जब चैनल का एंकर राहुल वर्मा सुलझाने लगता है तो उसके सामने रहस्य की कई परते खुलती है।

कथानक बहुत ही अच्छा है  और कोरोना काल का भी इसमें समावेश है और 
इसमें ज्यादा पात्र नही है और रहस्य को अंत तक बखूबी बनाये रखा गया है ।और संभवतः पहली बार आपको जासूस की भूमिका में एक मीडिया रिपोर्टर और एंकर देखने को मिलेगा और  भाषा बहुत ही सरल  है ।उपन्यास में हास्य और व्यंग का तड़का भरपूर है ।उपन्यास कब शुरू हो गया और कब खत्म हो गया पता ही नही चला ।मनोरंजन के साथ साथ मीडिया इन्वेस्टीगेशन की जानकारी से भी पाठक रूबरू होता है  और अब में अंजिक्य शर्मा सर का प्रशंसक बन चुका हूं।


रेटिंग 4/5

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नई दिल्ली

शंखनाद : वेद प्रकाश शर्मा


उपन्यास शंखनाद
लेखक वेद प्रकाश शर्मा

कहानी की शुरुआत होतीहै बैरागी नाम के एक चित्रकार से जो एक चित्र बनाता है जो उसकी बेटी का होता है
     वो उसका चित्र देखता है और कहता है कि मै तुम्हारे कतिलों से बदला लेकर ही रहेगा 
       बलदेव राज भाटिया अपने बेडरूम मे सो रहा होता है कि वहा एक नकाबपोस उसे मारने के इरादे से आता है पर वो सावधान रहता है इसलिए बच जाता है 
      कामदेव धुम्मन एक गायेक और शायर है उसे दो पत्र मिलते हैं जिसमे उसे मुम्बई से दिल्ली आने के लिए लिखा गया है उसे पढकर वो दिल्ली आने के लिए तैयार हो जाता है
       बैरागी के बारे मे ये अफवाह फैलता है कि उसका 6 चित्र बनाने के बाद वो सन्यास ले लेगा पर वो पत्रकारों से कहता है कि ये सब झूठ है कोई उसके नाम से अफवाह फैला रहा है
  उसे एक रहरयमई फोन आता है फोन करने वाला कहता है कि उसे 5 चित्र बनाने हैं वो जिसका चित्र बनाएगा वो उसे मार डालेगा 
    कहानी जबरदस्त है कुछ सस्पेंस है कुछ इमोसनल है पर ये एक बेहतरीन उपन्यास है एक बार पढने लायक है
लास्ट मे वेद जी ने खुद लिखा है कि इसमे सस्पेंस ज्यादा नही है पर कहानी के हिसाब से भरपूर है और जो कहानी की मांग है उस हिसाब से लिखा गया है 
        
  रेटिंग 10 में से 8



कहानी का हीरो जो की एक प्रेस रिपोर्टर रहता है उसे उसके एडिटर द्वारा एक कस्बे में रेलमाता के मंदिर पर स्टोरी करने बोला जाता है, हीरो को पता चलता है की उसके परिवार का इतिहास इस जगह जुड़ा हुआ है तो उसकी उत्सुकता बढ़ जाती है, 

हीरो को वहां पहुच के पता चलता है रेलमाता के मंदिर के तार बरसो पुरानी एक रेल दुर्घटना से जुड़े हुए है, जो की दुर्घटना ग्रस्त मानी जाती है लेकिन रेल के कोई भी हिस्सा बरामद नही होता

रेल दुर्घटना ग्रस्त हुई की नही 
हुई तो बरामद क्यों नही हुई
रेल के साथ उसके यात्री कहाँ गए
हीरो के परिवार का रेल दुर्घटना से क्या संबंध है
इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़िए

वेद प्रकाश कंबोज का नया(पुराना) उपन्यास
"रेलगाड़ी का भूत"

By आलोप(भोकाल)

वारलॉक 2 मौत की घाटी

 - उपन्यास समीक्षा : 

वारलॉक  2  मौत की घाटी 

लेखक : विक्रम ई. दीवान 

प्रकाशन : बुक कैफे पब्लिकेशन

ISBN: 978-81-945753-3-7

पृष्ठ संख्या -223

समीक्षा -  संजय आर्य 


"तूफान जब आकर गुजर जाता है तो तिनके ही बचते है और जब बर्फ का तूफान आता है तो वह हर आग को बुझा देता है सिर्फ एक बात पर में तुमसे सहमत हूं कि यह मौत का खेल खत्म होने से पहले अभी कई जिंदगियों को लील जायेगा "


मौत का खेल  -  जी हां ! 

वारलॉक का पहला भाग  जहाँ भारतीय तंत्र -मन्त्र की अद्भुत जानकारी के साथ काले जादू की दुनिया की अलौकिक सैर कराता है वही  इसका दूसरा और अंतिम भाग  वारलॉक 2 "मौत की घाटी"  आपको काली दुनिया के  शैतान  वारलॉक के भयानक और घिनौने चेहरे से परिचय कराता है ।  

वारलॉक अपने शैतानी मंसूबों को पूरा करने के लिए गुप्त काली तांत्रिक शक्तियों और  आत्माओ और जिन्नात की ताकत को फिर से हासिल करने के लिए गुलाम प्रेत हरिनाथ की मदद लेता है और इसके लिए "भद्रकाली शबरी साधना " करता है ।फिर शुरू होता है वहशी  वारलॉक का खूनी प्रतिशोध । वारलॉक कहता है - 

"वारलॉक का बदला भयानक होता है।वह किसी को नही बख्शता , किसी को भी नही ।" 


अंधा तांत्रिक और कर्नल नारंग  वारलॉक को उसकी शक्तियों को हासिल करने से  रोकना चाहते है ।और शुरू होती है महारथी तांत्रिको की  आपस मे भयानक जंग।

 

क्या वारलॉक अपनी काली शक्तियों को फिर से हासिल कर सका?

वारलॉक का भयानक बदला क्या था?किससे बदला लेना चाहता था वारलॉक?

क्या वह सफल हो सका?

अच्छाई और बुराई के बीच  अंतिम युद्ध में किसकी जीत हुई? 

अंधा तांत्रिक और उसके साथी उसको रोक पाए?

इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा ।


मौत की घाटी   "तंत्र -मंत्र "  "काले जादू "  और आत्माओ की दुनिया की सैर कराती अद्भुत और अलौकिक कहानी  है।

इसका हिंदी अनुवाद चंद्रप्रकाश पांडेय  ने किया है और सरल , सहज भाषा मे शानदार अनुवाद किया है ।

वारलॉक 2 अच्छाई और बुराई के बीच जंग है और शुरू से अंत तक रोचक और पठनीय है उपन्यास में कई डरावने  दृश्य ऐसे है जिसका  अनुभव पाठक लंबे समय तक याद करते रहेंगे ।मनोरंजन के साथ- साथ भारतीय तंत्र साधना की अद्भुत जानकारी से भी पाठक रूबरू होता है l


 हॉरर  और थ्रिलर उपन्यासो के प्रेमी तो इसको अवश्य पढ़े । जिन पाठकों ने इसका पहला भाग वारलॉक नही पढ़ा है , वारलॉक 2 का असली थ्रिल और रोमांच अनुभव करने के लिए अवश्य पढ़े। दूसरा भाग अपने पहले भाग की तुलना में और ज्यादा अद्भुत और अविस्मरणीय है ।


उपन्यास का नाम : मौत अब दूर नही
लेखक : अजिंक्य शर्मा
फॉर्मेट : ई-बुक
पृष्ठ संख्या : 178
समीक्षा by संजय आर्य 
 
  समीक्षा : -  यह लेखक का प्रथम उपन्यास है लेकिन यकीन मानिए जबआप  अंतिम पृष्ठ पर पहुँच कर उपन्यास खत्म करेंगे आप को कही से नही लगेगा कि यह प्रथम उपन्यास है।
कहानी शुरू होती है एक छोटे से शहर वैशालीनगर के एक रेस्टोरेंट  से ।   सौम्या का  दो साल की शादी के बाद डाइवोर्स हो जाता है और अपनी बहन लीना के कहने पर   एक दिन "ऑनलाइन ब्लाइंड डेट " के लिए सौम्या इसी रेस्टोरेंट में जाती है जहाँ उसकी मुलाकात अपने एक्स- हस्बैंड पुलिस ऑफिसर कपिल मिश्रा  के दोस्त अर्नब से होती है  ।इसके बाद अचानक थोड़ी देर के लिए लाइट चली जाती है और  किसी लड़की के चीखने की आवाज़ आती है और जब लाइट आती है तो रेस्टोरेंट के  वाशरुम में एक आदमी की लाश मिलती है जिसकी नृशंस हत्या कर हत्यारा खून से "गुड रिडेन्स " लिख कर चला जाता है 
फिर सौम्या के एक्स हस्बैंड कपिल मिश्रा की एंट्री होती है लाश के पास से कपिल मिश्रा को सौम्या की फ़ोटो मिलती है । और  कपिल मिश्रा इस मर्डर की मिस्ट्री को सुलझाने में लग जाता है लेकिन एक के बाद हत्याओं का सिलसिला शुरू हो जाता है और गुत्थी और उलझती जाती है ।
कौन था नृशंस हत्या  करनेवाला?
"गुड रिडेन्स" लिखने का हत्यारे का क्या मकसद था? 
इसका जवाब आपको उपन्यास के अंतिम पृष्टों में मिलेगा ।

यह एक थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री है और उपन्यास का केंद बिंदु है एक सायको किलर । कपिल मिश्रा का  इन्वेस्टीगेशन करने का स्टाइल आपको बहुत पसंद आएगा  । उपन्यास की सबसे बड़ी खासियत है इसकी नवीनता से भरी कहानी।आम मर्डर मिस्ट्री  उपन्यास के परे यह  वास्तविकता के करीब है और  भाषा बहुत ही सरल रोचक और रोजमर्रा के जीवन मे बोली जाने वाली है । उपन्यास में बहुत जगह हास्य और व्यंग्य से भरे संवाद का लेखक ने बढ़िया इस्तेमाल किया है  ।जो मुझे बेहद पसंद आया ।

इस उपन्यास अंत बहुत ही शानदार है जो आपको चौका देगा । और इसके पात्रों से आप जरूर फिर से मिलना चाहेंगे। सस्पेंसफुल थ्रीलर मर्डर मिस्ट्री पढ़ना चाहते है तो अवश्य पढे । उपन्यास किंडल पर उपलब्ध है ।

उपन्यास- सोलह साल का हिटलर
लेखक- केशव पंडित
केशव पंडित का यह छठवां उपन्यास है

कहानी की शुरुआत विजय और अजय दो दोस्तों से शुरू होती है जिसमें विजय की बहन नेहा परीक्षा में फेल होने की वजह से आत्महत्या कर लेती है और विजय अपनी बहन नेहा की मौत का जिम्मेदार दिव्या को मानता है  क्योंकि दिव्या की मोहब्बत को विजय ने ठुकरा दिया था और दिव्या ने उसे धमकी दी थी फिर विजय दिव्या से अपनी बहन नेहा की मौत का बदला दिव्या की इज्जत लूट कर और उसके बाप प्रोफेसर का कत्ल करके लेता है तब पुलिस विजय को गिरफ्तार करने आती है लेकिन विजय फरार हो जाता है

जागीरदार बहादुर सिंह मरने से पहले अपने 50 करोड़ के खजाने का नक्शा पहेली नुमा बना कर अपने खास दोस्त दयाल सेठ को सौंप देता है कि उसके बेटे के आने पर वह नक्शा उसके बेटे को दे देगा  लेकिन  किसी तरह से अंडरवर्ल्ड के डॉन नागराज को खजाने के बारे में खबर लग जाती है तब वह दयाल सेट को धमकी देता है और दयाल सेठ की बेटी राधिका को उठवा लेता है और दयाल सेठ से कहता है की नक्शे का पता बता दे नहीं बताया तो उसकी बेटी का बलात्कार करके उसका कत्ल कर दिया जाएगा
तभी दयाल सेठ के पास एक गरीब और फटे हाल व्यक्ति आता है जो अपना नाम शेखर बताता है और काम मांगता है  फिर सेठ जी मजबूर होकर उसे काम पर रख लेते हैं लेकिन सेठ जी की परेशानी देखकर शेखर पूछता है कि उनको क्या दिक्कत है तो सेठ जी बता देते हैं कि उनकी बेटी का किडनैप नागराज ने कर लिया है  तब शेखर सेठ जी को आश्वासन देता है कि वह उनकी बेटी राधिका को किसी भी कीमत पर नागराज के चंगुल से छुड़ा लाएगा

विजय के दोस्त अजय की बीवी के किसी गैर मर्द के साथ नाजायज संबंध रहते हैं और अजय को शक हो जाता है तो अपनी बीवी कामना को खरी-खोटी सुनाता है लेकिन कामना अपनी सफाई देकर किसी तरह बच जाती है फिर अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति अजय को खत्म करने की स्कीम बनाती है ताकि वह अपने पति से छुटकारा पा सके और अपने प्रेमी के साथ शादी कर सके

1 क्या अजय की पत्नी कामना अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति अजय का कत्ल कर सकी? ? 
2 क्या शेखर दयाल सेठ की बेटी राधिका को नागराज की कैद से आजाद करा सका? ? 
3 क्या दिव्या अपने पिता के हत्यारे और अपनी इज्जत के लुटेरे विजय से बदला ले सकी या फिर इज्जत लुट जाने की वजह से आत्महत्या कर ली? ? 
4 फरार विजय कहां और किस हाल में है क्या पुलिस उसे पकड़ पाई
5 जागीरदार साहब के खजाने का क्या हुआ क्या दयाल सेठ खजाने को बचा सकें
6 क्या नागराज खजाने का पता जानने में कामयाब हो सका
ऐसे ही अनसुलझे सवालों का जवाब पाने के लिए आपको  उपन्यास पढ़ना पड़ेगा
मुझे हरित नाम के छोटे बच्चे का किरदार पसंद आया
उपन्यास की बात करें तो मुझे कोई खास नहीं लगा

                         समीक्षक -डॉ राज वर्मा
                            Date- 4-9-2020